तुम मुझे ऐसे ही याद आती रहो
तो एक कविता लिखूं
कुछ तुम्हारे मन का,
कुछ अपने मन का लिखूं
सोचता हूँ वो सब भी लिखूं
जो कह नहीं सकता तुम्हे,
अपनी जुबाँ से
हाँ मन करता है,
कि वो सब भी लिखूं
चाहता हूँ कि
मै दे दूँ एक शक्ल अपने प्यार को
वो सभी बातें,
जो किया करते थे हम
जहाँ से अलग होकर,
क्या इस कोरे कागज पर
वो सब भी लिखूं ,
नहीं,
मै नहीं लिख सकता
कोई भी कविता
तुम्हारे लिए
आखिर,
बातें इतनी हैं
कि क्या क्या लिखूं
तो एक कविता लिखूं
कुछ तुम्हारे मन का,
कुछ अपने मन का लिखूं
सोचता हूँ वो सब भी लिखूं
जो कह नहीं सकता तुम्हे,
अपनी जुबाँ से
हाँ मन करता है,
कि वो सब भी लिखूं
चाहता हूँ कि
मै दे दूँ एक शक्ल अपने प्यार को
वो सभी बातें,
जो किया करते थे हम
जहाँ से अलग होकर,
क्या इस कोरे कागज पर
वो सब भी लिखूं ,
नहीं,
मै नहीं लिख सकता
कोई भी कविता
तुम्हारे लिए
आखिर,
बातें इतनी हैं
कि क्या क्या लिखूं
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