आखिर क्यों ?
उसे जगना नहीं है नींद से
सबेरा भले ही कितना सुहाना हो/
उसे सोना है, सोना है,
बस सोना है
आखिर क्यों ?
वह कहता है
आँखें नहीं खोलेगा
इस चमकते सुनहरे उजाले में
जहाँ वह ठहर नहीं सकता
एक भी क्षण,
आखिर
वह क्यों भूल जाना चाहता है
उन मस्ती के दिनों को
जब सारी दुनिया
उसे हाथो पे बिठाये फिरती थी
धिक्कारता अपने आपको ,
अपने भाग्य को
आखिर
वह क्यों नहीं जगना चाहता
इस नींद से,
सोचते-सोचते
इसी कशमकश को
उसकी प्यारी और सुहानी शाम
पुनः आ जाती,,,,,,,,,,,,,,,,
"लाल बहादुर पुष्कर"
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