अभी-अभी
आया था इस नयी दुनिया में
अभी-अभी,
उसने देखा कि सब कुछ
वैसा नहीं है,
जैसा की उसने सोचा था/
जहाँ गाव की छोटी-छोटी
इतराती हुई पग्दंदिया
उसके सपने में रोज़ आती थी
कहाँ यहाँ
सड़कें हैं कि,
ख़त्म होती ही नहीं
आँखें थक जाती है देखते-देखते
गाड़ियों की सरसराहट को,
गिनती ख़त्म नहीं होती
उसकी
भूल जाता है बीच में ही,
कि वहा कहाँ था ,,,,,,,,,,,,,,,,,,
"लाल बहादुर पुष्कर"
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