कूड़ों का ढेर

बड़ी तल्लीनता से निहारता 
उस ओर,
जिस ओर से आ रहा होता 
कूड़ों का ढेर,
उछल पड़ता था देखकर
उन कूड़ों को,
जिसमे होते थे,
कुछ  प्लास्टिक के टुकड़े 
जुट जाता था सुबह-सुबह
अलग करने के लिए,
उन कूड़ों  के ढेरों को
जिसमे छुपी होती थी 
उसकी रोजी रोटी,,,,,,,,,,,,,,

                                             "लाल बहादुर पुष्कर"

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