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समय

काट दो जंगलों  को , जला दो झाड़ियाँ रहने न पाए एक भी जीव अँधेरे में , बेघर कर दो , उन्हें जो बिना वजह सताते नहीं किसी को , शायद अब समय आ गया है वजह देने का उन्हें कि वे सताए हमें बिना वजह के आखिर हम उन्हें क्यों नहीं रहने देते उन्हें उनके बसेरे में जहाँ वे रहना चाहते हैं आखिर क्यों मनुष्य उजाड़ रहा घर दूसरों का, अपना घर बनाने के लिए क्या मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया अपने विकास में //                                              "लाल बहादुर पुष्कर"