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Showing posts from June, 2013
हाँ! मैंने उन्हें देखा है;., धूल में सने हुए  धूप में भुने हुए मटमैले कपड़े पहने हुए  हाँ! मैंने उन्हें देखा है इर्द-गिर्द घूमते हुए कुछ ढूंढते हुए कूड़ों के ढेर पर कूदते हुए हाँ! मैंने उन्हें देखा है बिजबिजाते नाले के पास सांस लेते हुए लगातार खांसते हुए सीलनभरी चारदीवारी में रहते हुए हाँ! मैंने उन्हें देखा है भीगी कथरी को सुखाते हुए टपकते छप्पर को बनाते हुए हाँ! मैंने उन्हें देखा है मामूली सी बीमारी से लड़ते हुए अकाल की महामारी से मरते हुए हाँ! मैंने उन्हें देखा है;.,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,लाल  बहादुर पुष्कर
डरना, सहमना  चीखना  चिल्लाना  पीढ़ियों की विरासत को  पल-पल में भुनाना  घुट-घुट के मरना  और उसे अपनी नियति बताना  बार-बार झगड़ना  दबी कुचली जिंदगी से बाहर निकलने के लिए  यही दास्तान बिखरा गुल्मे-समाज में ,,,,,,,,,,,,,,लाल बहादुर पुष्कर