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हाँ! मैंने उन्हें देखा है;., धूल में सने हुए  धूप में भुने हुए मटमैले कपड़े पहने हुए  हाँ! मैंने उन्हें देखा है इर्द-गिर्द घूमते हुए कुछ ढूंढते हुए कूड़ों के ढेर पर कूदते हुए हाँ! मैंने उन्हें देखा है बिजबिजाते नाले के पास सांस लेते हुए लगातार खांसते हुए सीलनभरी चारदीवारी में रहते हुए हाँ! मैंने उन्हें देखा है भीगी कथरी को सुखाते हुए टपकते छप्पर को बनाते हुए हाँ! मैंने उन्हें देखा है मामूली सी बीमारी से लड़ते हुए अकाल की महामारी से मरते हुए हाँ! मैंने उन्हें देखा है;.,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,लाल  बहादुर पुष्कर
डरना, सहमना  चीखना  चिल्लाना  पीढ़ियों की विरासत को  पल-पल में भुनाना  घुट-घुट के मरना  और उसे अपनी नियति बताना  बार-बार झगड़ना  दबी कुचली जिंदगी से बाहर निकलने के लिए  यही दास्तान बिखरा गुल्मे-समाज में ,,,,,,,,,,,,,,लाल बहादुर पुष्कर   
उन्हें जब-जब याद करता हूँ कभी नाउम्मीद भरी निराशा के साथ कि मै भी उन्हें याद आऊंगा; एक वो है उन्हें फुर्सत नहीं तिलिस्म-ए-रवायत से,,,,,,,,,,,,,,,,,,,"लाल बहादुर पुष्कर" 21 minutes ago
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किस्सा-ए-जुमला हर रोज़ हर पहर होती है;  इन्हें सुन-सुन के शाम-ए-सहर होती है  पलके झपकने लगती है यादों के; इन तरन्नुम को बेखबर सुनके  मौका-ए-बदहवास कहाँ उम्रभर होती है,,,,,,,,,,,,, लाल बहादुर पुष्कर
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तेरी डेहरी पे आ-आ के लौट जाता हूँ हर बार  कि कभी तो झाकेगी तू; यूँ ही करने बोसा-ए-दीदार इन हवाओं का;  जो तुम्हारे खिडकियों से सटके चुपचाप गुजर जातें हैं  कसम खाता हूँ हर बार इस बार तो नहीं ताकूंगा   एक तिरछी नज़र भी तुम्हारी तरफ  गोया नज़र है कि कमबख्त चली ही जाती है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,'लाल बहादुर पुष्कर'