उन्हें जब-जब याद करता हूँ कभी नाउम्मीद भरी निराशा के साथ कि मै भी उन्हें याद आऊंगा; एक वो है उन्हें फुर्सत नहीं तिलिस्म-ए-रवायत से,,,,,,,,,,,,,,,,,,,"लाल बहादुर पुष्कर" 21 minutes ago
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तेरी डेहरी पे आ-आ के लौट जाता हूँ हर बार कि कभी तो झाकेगी तू; यूँ ही करने बोसा-ए-दीदार इन हवाओं का; जो तुम्हारे खिडकियों से सटके चुपचाप गुजर जातें हैं कसम खाता हूँ हर बार इस बार तो नहीं ताकूंगा एक तिरछी नज़र भी तुम्हारी तरफ गोया नज़र है कि कमबख्त चली ही जाती है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,'लाल बहादुर पुष्कर'