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Showing posts from January, 2012

कोसी नदी की बाढ़ .......

आज खुशी के मारे पागल है, उसे खेत के लिए पानी जो मिल गया, मानो सारी खुशियों का खजाना मिल गया, बड़ी मिन्नतें की थी जो कि मिले उसे पानी उसके धान के लिए लो उसे समय पे, मिल गया सारी उम्मीदे अब पूरी होंगी, ऐसा सोचा उसने, आखिर उसकी जाती हुई फसल जो बच गयी, अब तो वो सपने बुनने लगा और लगाने लगा हिसाब, अबकी बरस मुक्त हो जायेगा सभी के कर्जो से और न उसे देगा कोई गाली और ना ही दिखायेगा रुआब अबकी बरस तो वह घर भी छवायेगा, जिससे ख़त्म हो घर की सीलन, छुटकी भी अब जवान हो चली उसके भी हाथ पीले कराएगा, एक बार हो जाये छुटकी की शादी तो वह गंगा नहायेगा लेकिन उसे क्या था मालूम एक दिन अचानक टूटेगा उस पर पहाड़ तभी आ गयी कोसी नदी की बाढ़ देखते ही देखते भर गया पानी से खेत और उसकी आँख उसके अरमानो पर फिर गया था पानी आह!! अब वो जाये कहाँ ,,,,,,,,
तुम मुझे ऐसे ही याद आती रहो तो एक कविता लिखूं कुछ तुम्हारे मन का, कुछ अपने मन का लिखूं सोचता हूँ वो सब भी लिखूं जो कह नहीं सकता तुम्हे, अपनी जुबाँ से हाँ मन करता है, कि वो सब भी लिखूं चाहता हूँ कि मै दे दूँ  एक शक्ल अपने प्यार को वो सभी बातें, जो किया करते थे हम जहाँ से अलग होकर, क्या इस कोरे कागज पर वो सब भी लिखूं , नहीं, मै नहीं लिख सकता कोई भी कविता तुम्हारे लिए आखिर, बातें इतनी हैं कि क्या क्या लिखूं 

पूछता कागज कलम से

अब क्यों नहीं लिखती तू , पहले जैसे स्वतंत्र होकर क्या हो गया है तुझे बता न , पूछता कागज बड़ा गंभीर हो कलम से, क्या तेरी  धार  ख़तम हो चुकी या बस दिखती है सुन्दर, केवल आवरण में क्या तेरी स्याही में भी मिलावट हो गयी जो तुझे स्वस्थ नहीं रहने देती. और बरगलाती है उल्टा-सीधा लिखवाती है क्या सचमुच तू बीमार है, किसी बीमारी से या परेशान है अपनी लाचारी से, आह! चल छोड़ ये बता आजकल तू रहती है कहाँ , वहीँ न जहाँ तू रहना चाहती है, या वहां जहाँ तेरा दम घुटता है जहाँ तुझसे जबरदस्ती लिखवाया जाता है, उन दस्तावेजों को, जिसे लिखने से तेरी आत्मा तुझे, धिक्कारती है तुझे शर्म नहीं आती जब तू दौड़ती है रेस, मेरे तन पर मेरा रोयाँ रोयाँ सिहर, उठता है कि अरे तू पागल तो नहीं हो गयी , ये क्या लिखती जा रही बिना सिर पैर के, पहले तू जब लिखती थी तो उसका आशय , तर्क रहता था शामिल, आह! लगता है तेरी बुद्धि को लग गया घुन अरे तू विद्रोह क्यों नहीं कर देती, इस गुलामी से कि नहीं लिखना मुझे बेईमानी , भ्रस्टाचार, साम्प्रदायिकता और वैमनस्यता के दस्तावेज, कह दे, अब मै आजाद होना चाहती हू