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Showing posts from October, 2011
मै आज का कवि हूँ  सच सच बोलता हूँ  लिखता उतना ही हूँ जितना बोलता हूँ  मै आज का कवि हूँ सच सच बोलता हूँ  भले उदय खिल्ली जमाना, फिर भी हृदय की बात बोलता हूँ  मै आज का कवि हूँ  सच सच बोलता हूँ  नहीं गढ़ता मै दुनिया कल्पना की, अपने शब्दों से अपने को ही तोलता हूँ   मै आज का कवि हूँ  सच सच बोलता हूँ  जनता हूँ नहीं हो सकती क्रांति  मेरे लिखने मात्र से पर क्या करू  शोषित हूँ शोषित की भाषा बोलता हूँ  मै आज का कवि हूँ  सच सच बोलता हूँ  न जाने कितनी लिखी गयी होंगी कवितायेँ 

न कुछ में जीते हैं

अपना सब कुछ सौंपकर  'सब कुछ' को, चलो,   न कुछ में जीते हैं  बहुत हो चुका मैं, मेरा, तुम्हारा  और अपनेपन का दिखावा  चलो  न कुछ में जीते हैं ,,,,,,,,,,लालू  

न कुछ में जीते हैं

अपना सब कुछ सौंपकर  'सब कुछ' को, चलो,   न कुछ में जीते हैं  बहुत हो चुका मैं ,मेरा , तुम्हारा  और अपनेपन का दिखावा  चलो  न कुछ में जीते हैं ,,,,,,,,,,लालू  

चलो एकांत में चलते हैं

चलो एकांत में चलते हैं  कुछ देर पैदल ही सही  भले उजाला न हो वहां  अँधेरे में ही चलते हैं  चलो एकांत में चलते हैं  बहुत घूम चुके इस चकाचौंध की रौशनी में  अब अँधेरे में ही घुलते है  चलो एकांत में चलते है क्यों न करे , हम अँधेरे का ही चुम्बन  लेकर बाँहों में सो जाएँ उसे,  आखिर  अँधेरे से ही रोशनी निकलते है चलो एकांत में चलते है ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,लालू