किस्सा-ए-जुमला हर रोज़ हर पहर होती है; 
इन्हें सुन-सुन के शाम-ए-सहर होती है 
पलके झपकने लगती है यादों के;
इन तरन्नुम को बेखबर सुनके 
मौका-ए-बदहवास कहाँ उम्रभर होती है,,,,,,,,,,,,, लाल बहादुर पुष्कर

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