किस्सा-ए-जुमला हर रोज़ हर पहर होती है; इन्हें सुन-सुन के शाम-ए-सहर होती है पलके झपकने लगती है यादों के; इन तरन्नुम को बेखबर सुनके मौका-ए-बदहवास कहाँ उम्रभर होती है,,,,,,,,,,,,, लाल बहादुर पुष्कर
डरना, सहमना चीखना चिल्लाना पीढ़ियों की विरासत को पल-पल में भुनाना घुट-घुट के मरना और उसे अपनी नियति बताना बार-बार झगड़ना दबी कुचली जिंदगी से बाहर निकलने के लिए यही दास्तान बिखरा गुल्मे-समाज में ,,,,,,,,,,,,,,लाल बहादुर पुष्कर
आखिर क्यों माँ होने का मतलब सिर्फ माँ ही समझती है, अपने बच्चों के जीवन में अपना जीवन समझती है बच्चा रोये तो रोये ,मुस्कुराये तो मुस्कराती है आखिर क्यों माँ होने मतलब सिर्फ माँ ही समझती है
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