Get link Facebook X Pinterest Email Other Apps May 19, 2013 किस्सा-ए-जुमला हर रोज़ हर पहर होती है; इन्हें सुन-सुन के शाम-ए-सहर होती है पलके झपकने लगती है यादों के;इन तरन्नुम को बेखबर सुनके मौका-ए-बदहवास कहाँ उम्रभर होती है,,,,,,,,,,,,, लाल बहादुर पुष्कर Get link Facebook X Pinterest Email Other Apps Comments
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