हाँ! मैंने उन्हें देखा है;.,



धूल में सने हुए 
धूप में भुने हुए
मटमैले कपड़े पहने हुए 
हाँ! मैंने उन्हें देखा है
इर्द-गिर्द घूमते हुए
कुछ ढूंढते हुए
कूड़ों के ढेर पर कूदते हुए
हाँ! मैंने उन्हें देखा है
बिजबिजाते नाले के पास
सांस लेते हुए
लगातार खांसते हुए
सीलनभरी चारदीवारी में
रहते हुए
हाँ! मैंने उन्हें देखा है
भीगी कथरी को सुखाते हुए
टपकते छप्पर को बनाते हुए
हाँ! मैंने उन्हें देखा है
मामूली सी बीमारी से लड़ते हुए
अकाल की महामारी से मरते हुए
हाँ! मैंने उन्हें देखा है;.,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,लाल बहादुर पुष्कर

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