डरना,
सहमना 
चीखना 
चिल्लाना 
पीढ़ियों की विरासत को 
पल-पल में भुनाना 
घुट-घुट के मरना 
और उसे अपनी नियति बताना 
बार-बार झगड़ना 
दबी कुचली जिंदगी से बाहर निकलने के लिए 
यही दास्तान बिखरा गुल्मे-समाज में ,,,,,,,,,,,,,,लाल बहादुर पुष्कर
  

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