पसीना
कोई क्यों बहाए पसीना
कमाने के लिए पैसा,
क्या पसीना होता है
सिर्फ पैसे का प्रतीक ,
या और भी है कोई बात
इस पसीने में
क्यूँ यह अदभूत मिलन
शीतल वायु के स्पर्श पर
देता है ठंडक
मन और मस्तिस्क को ...
सोचता हूँ
क्यूँ भाग जाता है ,
पसीने की मिठास से
मुसाफिर चलते चलते अक्सर,
क्यूँ नहीं रुक कर सोचता एक बार
कि बहाकर पसीना ही बनता है ,
आदमी
आदमियत की जिन्दा मिशाल,
हाँ अब समझ में आता है
कि बहुत गहरा रिश्ता है
मेहनत का पसीने से ,
और यह भी सच है
की सच्ची मेहनत और पसीना
मांगता है बड़े त्याग ......
"लाल बहादुर पुष्कर"
bahut badhiya kavita hai. isko facebook pe chaspa karo.
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