मै आज का कवि हूँ सच सच बोलता हूँ
लिखता उतना ही हूँ जितना बोलता हूँ
मै आज का कवि हूँ सच सच बोलता हूँ
भले उदय खिल्ली जमाना,
फिर भी हृदय की बात बोलता हूँ
मै आज का कवि हूँ सच सच बोलता हूँ
नहीं गढ़ता मै दुनिया कल्पना की,
अपने शब्दों से अपने को ही तोलता हूँ
मै आज का कवि हूँ सच सच बोलता हूँ
जनता हूँ नहीं हो सकती क्रांति
मेरे लिखने मात्र से
पर क्या करू
शोषित हूँ शोषित की भाषा बोलता हूँ
मै आज का कवि हूँ सच सच बोलता हूँ
न जाने कितनी लिखी गयी होंगी कवितायेँ
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