डरना, सहमना चीखना चिल्लाना पीढ़ियों की विरासत को पल-पल में भुनाना घुट-घुट के मरना और उसे अपनी नियति बताना बार-बार झगड़ना दबी कुचली जिंदगी से बाहर निकलने के लिए यही दास्तान बिखरा गुल्मे-समाज में ,,,,,,,,,,,,,,लाल बहादुर पुष्कर
आखिर क्यों माँ होने का मतलब सिर्फ माँ ही समझती है, अपने बच्चों के जीवन में अपना जीवन समझती है बच्चा रोये तो रोये ,मुस्कुराये तो मुस्कराती है आखिर क्यों माँ होने मतलब सिर्फ माँ ही समझती है
Comments
Post a Comment