चुनौती

दे रही चुनौती
ठण्ड को,  
उसके काम की गर्मी 
ठण्ड की हालत है पस्त
कि वह डिगाए उसे कैसे,
कि लगने लगे सर्दी
नहीं, 
वह नहीं डिगेगा
अपनी राह से,
जो उसे देती है गर्मी,
इसी गर्मी ने 
रोक रखा है उसे 
कि वह न समझे की
वह ठण्ड से,
क्यों रखता है बैर 
इस तरह,
शायद
वह भूल जाना चाहता है 
इस मौसम को,
जान बूझकर
आखिर, 
उसका नकाब जो है 
काम की गर्मी,,,,,,,,,,,
                                      "लाल बहादुर पुष्कर"

Comments

Popular posts from this blog